बिहार के पर्यटन में पश्चिम चम्पारण

बिहार के पर्यटन में पश्चिम चम्पारण

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प्रो०अरविंद नाथ तिवारी पश्चिम चंपारण। बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषा क्षेत्र माना जाता है। उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। आंदोलन के समय चंपारण के आमंत्रण पर महात्मा गांधी 17 अप्रैल 1917को यहां आकर निलहों के विरुद्ध आंदोलन […]

प्रो०अरविंद नाथ तिवारी

पश्चिम चंपारण। बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषा क्षेत्र माना जाता है। उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। आंदोलन के समय चंपारण के आमंत्रण पर महात्मा गांधी 17 अप्रैल 1917को यहां आकर निलहों के विरुद्ध आंदोलन खड़ा किया था। हिमालय के तराई में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वन संपदा से आज भी परिपूर्ण है। चंपारण का शाब्दिक मूल अर्थ है- चंपा जोड़ अरण्य, जिसका अर्थ होता है चंपा के पेड़ों से आच्छादित जंगल।पश्चिम चम्पारण का जिला मुख्यालय बेतिया है। यह जिला बिहार में भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशेष स्थान रखता है।

महात्मा गांधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलाई थी। पश्चिम चंपारण सनातन दृष्टिकोण में काफी धनी जिला है, इसे वाल्मीकि नगर के नाम से भी जाना जाता है,भारतीय निर्वाचन आयोग ने

 


बिहार का पहला संसदीय सीट वाल्मीकिनगर से घोषित कर रखा है।चम्पारण में ऐसी मान्यता है कि वाल्मीकि नगर स्थित वन देवी शक्ति के स्थान पर वाल्मीकि महर्षि रहते थे और उन्होंने आदि काव्य रामायण की रचना अज्ञातवास में यहां रहकर की थी, जिसका उल्लेख रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने किया है। राम काल में अर्थात रामायण काल में उन्होंने लव कुश और मां सीता को अपने यहां शरण भी दिया था। इसलिए माता सीता का शरण स्थल और लव कुश घाट भी यहां मौजूद है, इस ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पश्चिम चंपारण एक महत्वपूर्ण पर्यटन का जगह है। प्राचीन काल से एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण यह भी है कि राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था, जो बाद में छठी सदी ईसा पूर्व वैशाली साम्राज्य का हिस्सा बन गया। अजातशत्रु के द्वारा वैशाली जीते जाने के बाद यह मौर्य वंश कण्व वंश, सुंग वंश, कुषाण वंश तथा गुप्त वंश के अधीन भी रहा। सन 750 से 1155 ई० के
बीच पाल वंश का चंपारण पर शासन रहा है, इसके बाद मिथिला सहित समूचा चंपारण प्रदेश सिमराव के राजा नरसिंह देव के अधीन हो गया। बाद में सन 1213 से 1227 ई0 के


बीच बंगाल के गयासुद्दीन एवज ने नरसिंह देव को हराकर मुस्लिम शासन की स्थापना की, इसके पहले यहां कई धर्म यहां पर फले फूले और पतन के गर्त में भी गए।यहां बौद्ध धर्म की उपस्थिति भी देखी जाती है। भगवान बुद्ध जब सारनाथ से गया के लिए प्रस्थान कर रहे थे, तो यहां लौरिया स्थित नंदनगढ़ पर उनका ठहराव हुआ था। नंदनगढ़ पर्यटन के दृष्टिकोण से आज भी महत्वपूर्ण जगह है, जिस पर बिहार सरकार का ध्यान देकर पर्यटन के लिए विकसित कर रही है। यहां आज भी बौद्ध भिक्षुओं का जमावड़ा वर्षभर तंत्र साधना के लिए देखा जाता है और ऐसी मान्यता है कि बौद्ध धर्म में जो तंत्र परंपरा है, उस तंत्र परंपरा की साधना यहां पर की जाती थी। भगवान बुद्ध यहां पर तंत्र साधना रूककर किए थे, यह स्तूप 24.38मीटर ऊंचा है।  आकार में बहु कोणीय तथा पांच वेदिकाओं में निर्मित है, जो एक के उपर एक अवस्थित है। नंदनगढ़ बौद्ध भिक्षुओं के लिए तंत्र साधना का स्थल है। कुल मिलाकर 1763 ईस्वी में यहां के राजा धुरूम सिंह के समय बेतिया राज अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा। इसके अंतिम राजा हरेंद्र सिंह के पुत्र नहीं

होने से 1817 में इसका नियंत्रण न्यायिक संरक्षण में चला गया। हरेंद्र किशोर सिंह की दूसरी रानी जानकी कुंवर के अनुसार 1880 में बेतिया महल की मरम्मत कराई गई थी। बेतिया राज की शान का प्रतीक महल राज कचहरी आज शहर के मध्य इसके गौरव का प्रतीक बनकर खड़ा है। बेतिया जिला मुख्यालय से महज दस – बारह किलोमीटर की दुरी पर सरेया मन है, जो पर्यटन के लिए ख्यातिप्रद जगह है,यह वही स्थल है जहाँ देश के नामचीन क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, कमल नाथ तिवारी, केदार मणि शुक्ल, योगेंद्र शुक्ल,फणीन्द्र नाथ घोष आदि अपने क्रांति का ताना-बाना बुनने के लिए छिपने का ठिकाना बना रखा था। प्राकृतिक संपदा से हरा भरा यह क्षेत्र कश्मीर की डल झील की तरह दिखाई पड़ता है।बिहार सरकार ने पर्यटन के लिए इसमें नौकायन के लिए मोटरबोट का इंतजाम कर रखा है। बेतिया राज के महाराजा प्रत्येक दिन सुबह से इस झील का ताजा पानी मंगा कर पीते थे, कारण था कि उनका पाचन तंत्र मजबूत होता था, इस प्राकृतिक संपदा में देश विदेश के पक्षी और जंगली जानवरों ने अपना रैन बसेरा बना रखा है। 70 के दशक के बाद दस्यु सरगनाओं ने भी अपने छिपने का ठिकाना यहां बना रखा था। 2005 के दशक में
सुशासन कायम होने के बाद यह भयमुक्त हुआ।  उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान

काफी सक्रिय रहा है।बिहार में पर्यटन दृष्टिकोण से पश्चिम चम्पारण अंतर्गत चानकी गढ़, सोमेश्वर का शृंखलाबद्ध पहाड़ों की तलहटियां, सोफा मंदिर, जटाशंकर मंदिर, कालेश्वर मंदिर, मदनपुर देवी स्थान,कालीबाग मंदिर, नरदेवी स्थान, वाल्मीकि आश्रम, नदंनगढ प्रमुख स्थान है।बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री सुशील कुमार मोदी ने पश्चिम चंपारण में पर्यटन को विकसित करने के लिए बहुत सारा काम किया है। वाल्मीकि नगर स्थित गंडक नदी के तटों का पक्कीकरण करने के साथ नदी में नौकायन करने के लिए गंडक नदी के संगमस्थल तक मोटरबोट की व्यवस्था की है। यहां जटाशंकर स्थान से कालेश्वर स्थान और गेस्ट हाउस तक झूला और इको पार्क आदि का भी निर्माण कराया है। वर्तमान में बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  पश्चिम चंपारण अंतर्गत सोफा मंदिर से लेकर  दोन जंगल के सुदूर स्थित झीलों का भी स्वयं उ पर्यटन कर पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित करने का काम किया है। बिहार सरकार पर्यटन को विकसित करने के लिए हवाई अड्डा के निर्माण से लेकर सड़क तक का जाल बिछा रही है, जिससे कालांतर में यहां सैलानियों की आने की ज्यादा तादाद में संभावना दिखाई पड़ रही है।नीतीश कुमार के प्रयास से पश्चिम चम्पारण को पर्यटन से जोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश स्थित बुद्ध के निर्वाणस्थली कुशीनगर तक जोड़ा जा रहा है।

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