सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी का विशेष साक्षात्कार
हिन्दी मासिक पत्रिका `विवेक’ के साथ ख़ास बातचीत करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने विभिन्न जरूरी मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए।
सवालः अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के प्रारंभ के साथ ही रामजन्मभूमि आंदोलन समाप्त हो गया लेकिन क्या अब भगवान श्रीरामजी का विषय भी समाप्त हो गया?
उत्तरः श्री राममंदिर का शिलान्यास 1989 में पहले ही हो गया था। 5 अगस्त 2020 को केवल मंदिर निर्माण कार्य का शुभारंभ हुआ। मंदिर निर्माण के लिए भूमि प्राप्त हो इसलिए श्री रामजन्मभूमि का आंदोलन चल रहा था। सर्वोच्च न्यायालय का इस पर निर्णय आ गया। उनके आदेश के अनुसार एक न्यास बनाया गया। उस न्यास को मंदिर निर्माण के लिए भूमि प्राप्त हो गई। इसके साथ ही राममंदिर आंदोलन भी समाप्त हो गया लेकिन भगवान श्रीराम का विषय कभी समाप्त नहीं होगा। श्रीराम भारत के बहुसंख्यक समाज के लिए भगवान हैं और जिनके लिए भगवान नहीं भी हैं, उनके लिए आचरण के मापदंड तो हैं ही। भगवान राम भारत के उस गौरवशाली भूतकाल का अभिन्न अंग हैं, जो भूतकाल भारत के वर्तमान और भविष्य पर गहरा प्रभाव डालता है। राम थे, हैं और रहेंगे। जबसे श्रीराम प्रकट हुए हैं तब से यह विषय है और आगे भी चलेगा। श्री रामजन्मभूमि का आंदोलन जिस दिन ट्रस्ट बन गया उस दिन समाप्त हो गया।
सवालः काशी विश्वनाथ और मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति का आंदोलन भी क्या भविष्य में चलाया जायेगा?
उत्तरः हमको नहीं पता,क्योंकि हम आंदोलन करने वाले नहीं हैं। राम जन्मभूमि का आंदोलन भी हमने शुरू नहीं किया, वह समाज द्वारा बहुत पहले से चल रहा था। अशोक सिंहल जी के विश्व हिंदू परिषद् में जाने से भी बहुत पहले से चल रहा था। बाद में यह विषय विश्व हिंदू परिषद् के पास आया। हमने आंदोलन प्रारंभ नहीं किया, कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में हम इस आंदोलन से जुड़े। कोई आंदोलन शुरू करना यह हमारे एजेंडे में नहीं रहता है। हम तो शांतिपूर्वक संस्कार करते हुए प्रत्येक व्यक्ति का हृदय परिवर्तन करने वाले लोग हैं। हिंदू समाज क्या करेगा, यह मुझे पता नहीं, यह भविष्य की बात है। इसपर मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूँ। मैं इतना बताना चाहता हूँ कि हमलोग कोई आंदोलन शुरू नहीं करते।
सवालः अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बनने के बाद क्या यह मंदिर केवल पूजा-पाठ तक सीमित रहेगा या उससे कुछ और भी अपेक्षाएँ हैं?
उत्तरः पूजा-पाठ करने के लिए हमारे पास बहुत मंदिर हैं। इसके लिए इतना लंबा प्रयास करने की हिंदू समाज को कोई जरूरत नहीं थी। वास्तविकता यह है कि ये प्रमुख मंदिर इस देश के लोगों के नीति एवं धैर्य को समाप्त करने के लिए तोड़े गए थे। इसलिए हिंदू समाज की तब से यह इच्छा थी कि ये मंदिर फिर से खड़े हो जाएँ। स्वतंत्र होने के बाद वे खड़े हो रहे हैं, लेकिन केवल प्रतीक खड़े होने से काम नहीं चलता। जिन मूल्यों एवं आचरण के वे प्रतीक हैं, वैसा बनना पड़ता है। मंदिर तो बनेगा, लेकिन हमें क्या करना है, उसका उल्लेख 5 अगस्त के दिन मैंने किया था। “परमवैभव संपन्न विश्वगुरु भारत” बनाने के लिए भारत के प्रत्येक व्यक्ति को वैसा भारत निर्माण करने के योग्य बनना पड़ेगा। अत: मन की अयोध्या बनाना तुरंत शुरू कर देना चाहिए। राममंदिर बनते-बनते तक प्रत्येक भारतवासी के मन की अयोध्या भी खड़ी होनी चाहिए। मन की अयोध्या क्या है, इस बारे में भी मैंने रामचरितमानस के दो दोहे बताए थे।
काम कोह मद मान न मोहा! लोभ न छोभ न राग न द्रोहा!!
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया! तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया!!
राम में रमे हुए लोगों की अयोध्या ऐसी होती है। प्रत्येक भारतीय को अपने हृदय को ऐसा बनाना चाहिए। दूसरा दोहा है-
जाति पांति धनु धरमु बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई!
सब तजि तुम्हहि रहई उर लाई, तेहि के ह्रदयँ रहहु रघुराई!!
यह बातें होती है और ये हम सभी के अभिमान के विषय हैं। उसका अभिमान होने में कुछ गलत नहीं है। लेकिन इसको लेकर भेद हो जाये, इसको लेकर स्वार्थ साधा जाए तो यह अनुचित है। ‘सब तजि’ का अर्थ यह नहीं है कि संन्यास धारण कर हिमालय में चले जाएँ। इसका अर्थ यह है कि जिसके साथ हमारा मन जुड़ जाता है, जिससे मोह हो जाता है, उसे छोड़ दें। अपने हृदय में केवल राम को ही समाहित कर लें, राम से ही जोड़ लें, यानि रामजी के उस आदर्श को, उस आचरण को, उन मूल्यों को अपने हृदय में धारण कर लें। ‘तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई’ ऐसा जीवन बनाना, यह मुख्य काम है। उसके लिए मंदिर बनाने का आग्रह है। देश में इस संदर्भ में जागरूकता आनी चाहिए। इस भावना को सम्मान दिया जाना चाहिए। हमारे आदर्श श्रीराम के मंदिर को तोड़कर, हमें अपमानित करके हमारे जीवन को भ्रष्ट किया गया। हमें उसे फिर से खड़ा करना है, बड़ा करना है, इसलिए भव्य-दिव्य रूप से राम मंदिर बन रहा है। पूजा पाठ के लिए मंदिर बहुत हैं।
शेष अगले भाग में ...
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