
MLC चुनाव: डॉ. अखिलेश सिंह ने विधान परिषद् चुनाव में प्रतिद्वंदी प्रत्याशी को व्यवसायी और अपराधी कहते हुये बोला हमला
सागर सूरज
मोतिहारी। राज्य सभा सांसद सह मोतिहारी संसदीय क्षेत्र के पूर्व सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह (Ex MP Akhilesh prasad singh) शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में अपनी पार्टी द्वारा समर्थित विधान परिषद् के निर्दलीय प्रत्याशी महेश्वर प्रसाद सिंह (Maheshwar Singh) को समर्थन देने की अपील करते हुये राजद और एनडीए के प्रत्याशी को अपराधी और व्यवसायी कहते हुये कहा कि महेश्वर बाबु चुनाव जित चुके है सिर्फ रिजल्ट आना बाकि है वही अपराधी और व्यवसायी को लोग रिजेक्ट कर चुके है।
नाम ना लेते हुये ‘अपराधी’ शब्द का इस्तेमाल राजद (rajad RJD) प्रत्याशी बबलू देव (Babloo Dev) के लिए किया गया जबकि ‘व्यवसायी’ शब्द का इस्तेमाल एनडीए (NDA) प्रत्याशी बबलू गुप्ता (Babloo Gupta) के लिए किया गया। अब सवाल ये है कि क्या व्यवसायी होना गुनाह है अगर है तो क्या खुद अखिलेश प्रसाद सिंह किसी व्यवसाय से नहीं जुड़े है। उनके तीन-तीन फाइव स्टार होटल और हेलिकाप्टर का व्यवसाय क्या व्यवसाय नहीं है।
मुझे तो लगता है नेता गिरी तो खुद एक व्यवसाय है अगर नहीं होता तो टिकट देने को लेकर पार्टी फण्ड के नाम पर जो वसूली होती है, वो क्या है, साथ ही बड़े बड़े टेंडर और ट्रान्सफर मैनेज करने के बदले जो वसूली होती है वो क्या है। अगर व्यवसाय करना गुनाह है तो इनके पार्टी के नेता प्रियंका एवं उनके पति के व्यवसाय पर भी तो नजर डाले।
कांग्रेस पार्टी (Congress) महेश्वर सिंह जी को अपना सपोर्ट कर रही है। इनकी पार्टी की हालत तो ये है कि महागठबंधन से दुत्कारे जाने के बाद विधान परिषद् के लिए इनकी पार्टी को कोई प्रत्याशी नहीं मिल रहा था। इनकी पार्टी के कई बड़े नेता इसी जिले में टिकट से बंचित राजद और एनडीए के नेताओं से लगातार टिकट ले लेने की मांग कर रहे थे, फिर भी जब कोई तैयार नहीं हुआ तो महेश्वर सिंह रूपी एक मजबूत नेता को अपना समर्थन देकर कांग्रेस पार्टी कालर टाइट करने में लोग लगे हुये है।
महेश्वर सिंह पूर्व से ही चुनाव की तैयारी में लगातार लगे थे और अंतिम समय में टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दालिये ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। महेश्वर सिंह द्वारा लगातार पार्टी बदलने की प्रवृति एक तरफ उनकी किरकिरी कर रही है वही इसका फायदा भी वे खूब उठा रहे है। कारण है तक़रीबन हर पार्टी में उनका अपना कांटेक्ट।
उधर अखिलेश प्रसाद सिंह का उनकी अपनी जाती के लोगों को नजर अंदाज़ कर दी जाये तो इस जिले में उनकी अपनी पहचान नहीं है। उस जाती का वोट भी वे पिछले विधान सभा के चुनाव में अपने बेटा आकाश के पक्ष में भुना नहीं पाए तो फिर किसी ओर को क्या दिला पाएंगे इसमें संदेह। जहाँ तक पूर्व केसरिया विधायक बबलू देव के अपराधिक पृष्ठिभूमि का सवाल है तो अखिलेश प्रसाद सिंह जब यहाँ से सांसद चुने गए थे तो विजय जुलूस गाड़ी पर उनके बगल में कौन खड़ा था। सभी अख़बारों ने प्रकाशित किया था। तब क्या वे अपराधी नहीं थे।
उसके बाद तो बबलू देव विधायक ही हो गए। यानी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करों फिर उसे अपराधी, व्यवसायी आदि की संज्ञा दे कर अलग कर दो। उनकी जाती से कोई पद या तो उनको मिले या उनके बेटे को। पार्टी का समझौता नहीं हुआ तो क्या हुआ किसी भी पार्टी के खेमे में सीट जाये अखिलेश बाबु का लड़का ही लडेगा या वे खुद चुनाव लड़ेंगे।
दरअसल, जब चुनाव आता है तो अखिलेश बाबु भूमिहारों का नेता बन जाते है, लेकिन जब कोई भूमिहार नेता को समर्थन की बात आती है तो वे अपने पार्टी लाइन पर बाते करेंगे। यही दोहरी नीति अखिलेश बाबु पर सवालिया निशाँन पैदा करती है।
वैसे यहाँ जाती पति की बात नहीं की जा रही है, लेकिन अगर आप चुनाव के समय जाती-पाति अपने फायदे के लिए करेंगे तो ऐसे मौके पर आप से सवाल तो जरूर पूछा जाना चाहिए की क्या बबलू देव किसी ओर जाती से आते है। आपको याद होगा कि अखिलेश बाबु का मोतिहारी से राजनीती शुरू करने के समय बबलू देव उनके कट्टर समर्थक हुआ करते थे लेकिन बबलू देव खुद चुनाव लड़ने की घोषणा करके अखिलेश प्रसाद सिंह के दुश्मनों के कोटी में चले गए।
इधर बबलू देव और महेश्वर बाबू में कांटे की टक्कर है। ऊंट किस करवट बैठेगा कहना मुस्किल है, इसमें बबलू गुप्ता भी त्रिकोण बनांते दिख रहे है, कोई बड़ी फेर बदल होगी तभी बबलू गुप्ता अपनी सीट बचा पाएंगे।
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